आत्महत्या एक मूक बिमारी है, इसको कैसे रोके
आत्महत्या - कारण एवं समाधान पर चिंतन
पढ़ते हुए बड़ा अजीब लग रहा होगा कि आज दीपोत्सव के पर्व पर शुभकामनाएं देने की बजाय यह किस विषय पर बात कर रहा है , मैं अक्सर उन चीजों पर बात करना एवं लिखना पसंद करता हूं जिस पर चर्चा करने से समाज सार्वजनिक रूप से कन्नी काटता है ,
WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर वर्ष दुनिया में 8,00,000 लोग आत्महत्या करते हैं। जिसके अनुसार लगभग हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति की मृत्यु होती है।
विश्व में लगभग एक मिलियन लोग अब तक सुइसाइड कर चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी के रुप में सामने आएगा, जिससे लोगों की जान को सबसे ज्यादा खतरा है।
लोग कहते हैं कि आत्महत्या करना कायरता का काम है या उसमें समस्याओं का सामना करने की हिम्मत नहीं थी... फलां फलां बातें करता हैं ....... मगर मेरा ऐसा मानना है कि आत्महत्या करने से पहले वह व्यक्ति हजारों बार आत्मिक रूप से मरा होगा और उसके सहनशीलता की इंतिहा होने पर ही उसने शरीर को नष्ट करने का निर्णय लिया होगा , इन चीजों के लिए समाज ,परिवार , वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य एवं भौतिकता की अंधी दौड पूर्ण रूप से जिम्मेदार है ....लेकिन हम जिम्मेदारी लेने की बजाय समस्याओं को पास आउट करते हुए अंत में उसी को जिम्मेदार ठहरा कर समाज में आभासी जीत का दंभ भरते हैं । लेकिन कभी चिंतन या मनन करने की जरूरत महसूस की है ? कि उसके सामने ये परिस्थितियां उत्पन्न किसने की ? कौन जिम्मेदार है ? नहीं की ...क्योंकि समस्या की असली जड़ पर प्रहार करने से हमको वाहवाही नहीं मिलती है ... मैं इसके लिए वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य , समाज एवं परिवार को अधिक तथा उस व्यक्ति को आंशिक जिम्मेदार मानता हूं ।
हमारी परेशानी यह है कि हम आग लगने पर कुआं खोदने का विचार करते , जब समस्या पैर पसार रही होती है तब हम उसकी रोकथाम करने या समाज में उस पर चर्चा करने की बजाय उससे जानबूझकर मुंह मोड़ लेते हैं ।
वर्तमान समय में समाज के तथाकथित जिम्मेदारों का इन चीजों पर कोई ध्यान नहीं है ,उनको तो केवल पैसा ,पद और प्रतिष्ठा चाहिए.... चाहें उसकी कीमत नैतिक हो या अनैतिक ..... समाज की समस्याओं पर सार्थक चर्चा एवं निवारण करने की सबसे अधिक जिम्मेदारी बुद्धिजीवियों एवं शिक्षकों पर है लेकिन उनमें से कुछ झंडाबरदार बन जाते हैं जो गलत की समालोचना करने वाले को भी कहीं फंसाने या प्रताड़ित करने की हर संभव कोशिश करते रहते हैं लेकिन उनको यह पता नहीं है कि दूसरों को फंसाने के चक्कर में स्वंय फंस चुके होते हैं , यह बात उनको पता नहीं चलती है क्योंकि वे आभासी आत्मप्रशंसा में इतने तल्लीन एवं आशुतोष हो गए हैं उनके स्वयं के विवेक द्वारा आत्मावलोकन की क्षमता खत्म हो चुकी है , इसलिए नागरिकों से आग्रह है कि झंडाबरदारों का पल्ला छोड़ें एवं स्वयं अच्छे -बुरे का निर्णय करें , अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें , बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर सुनागरिक बनाएं ।
केस स्टडी - 1
मैं ऐसी ही एक घटना के उपरांत शोक संतप्त परिवार से मिलने गया तो वहां बैठे कुछ लोग कानाफूसी कर रहे थे कि फंला लड़का तो शारीरिक रूप से मजबूत , गठीला बदन था फिर उसको क्या परेशानी थी कि इस प्रकार का कदम उठा लिया ....अब हम को कौन समझाए कि आत्महत्या एक विचार हैं और उसकी रोकथाम के लिए शारीरिक बाहुबल की बजाय मानसिक बाहुबल की आवश्यकता होती है , उत्पन्न परिस्थितियों एवं कारणों पर चर्चा करने की बजाय उन्होंने अंत में भूत -प्रेत पर आरोप मढ़ दिया ....हम सबको अक्सर यही सुनने को मिलता है और हम इसके आदि भी हो गयें हैं ।
केस स्टडी - 2
PMT तथा सिविल सेवाओं में दो-तीन वर्षो की अथक मेहनत के उपरांत भी जब बच्चे आंकिक रूप से सफल नहीं हो पाते हैं तो पड़ोसियों , गांव वालों , समाज के लोगों के तानों की सहन करने की क्षमता खत्म होने के बाद बच्चें के दिमाग में आत्महत्या का विचार आता है ... बच्चे के परिवार वालें पैसे दे रहे हैं , उनको बच्चे की तैयारी से कोई शिकायत नहीं है , लेकिन पड़ोसी को बड़ी चिंता हो रही हैं ..वास्तव में वह उनकी असफलता से दुःखी नहीं है बल्कि उस को चिढ़ा रहे होते हैं ... ऐसे समय में हमें उसे चिढ़ाने की बजाय उसकी हौसला अफजाई करते हुए उसके साथ खड़ा रहने की आवश्यकता होती है ।
केस स्टडी - 3
किसान आत्महत्या का मुख्य कारण सरकारी नीतियां , अप्रत्यक्ष सामंतवादी व्यवस्था , साहूकारी व्यवस्था , मौसम की मार , किसान के प्रबंधन की व्यवस्था में कमी तथा सामाजिक बुराईयां है ।
कारण -
1 - भौतिकता
हम भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो चुके हैं , हमें पैसों, शानो - शौकत एवं आभासी प्रशंसा के लिए अनैतिक तरीकों का प्रयोग करते हुए अधिकाधिक धनार्जन करने से कोई गुरेज नहीं है , हम इसके चक्कर में कई बार कर्जदार हो जाते हैं या व्यापार में धोखा खा जाते हैं या न्यायिक प्रकरणों के चक्कर में फंसकर अवसाद की स्थिति में चले जाते हैं , यह समस्या मुख्यतः अंतर्मुखी व्यक्तित्व के साथ अधिक होती है इस कारण कई बार वे आत्महत्या जैसा कदम उठाते है ।
2- स्टारडम के चक्कर में कमाई से अधिक खर्चा
3- व्यवस्थाओं का कुप्रबंधन
4- अंतर्मुखी व्यवहार
5-सामाजिक बुराइयां ( जैसे विवाहेत्तर संबंध )
बचाव -
1-अच्छे लोगों को अपना आइडियल चुने
2- नशावृत्ति से दूर रहे
3- मेडिटेशन एवं योग को दिनचर्या में शामिल करें
4- अच्छी आदतों का निर्माण करें
5- फिजूलखर्ची पर रोक लगाएं
6- दिनचर्या को व्यवस्थित करें (खेलकूद एवं संगीत को शामिल करें)
7- जीवन में समस्याओं के समाधान पर अधिक चिंतन करें
8 - किसी दूसरे से स्वयं की तुलना करने से बचें
9 - खुश और आनंद में रहने की कोशिश करें
10 - खाली समय में अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करें
11- परिवार के साथ समय बिताएं
12 - दोस्तों एवं परिवार के साथ वर्ष में एक बार घूमने का प्लान बनाएं
13 - छोटी-छोटी खुशियों को आंचल में समेटे !
नोट - मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है , मेरे आलेख में से जो भी बातें अच्छी लगी है उनको शेयर करें और उस पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करें । कई मामलों में घर में मेरी भी नहीं चलती हैं क्योंकि आंतरिक लोकतंत्र जो हैं ।
खुश रहो, मस्त रहो!!
Cradit : मनमोहन बिश्नोई, सांचौर
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